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पत्ता गोभी

पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

पत्ता गोभी की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

जो किसान भाई पत्ता गोभी यानी बंद गोभी की खेती करना चाहते हैं, वे खेती की अन्य सभी तैयारियों के साथ कीट व रोग प्रबंधन के लिये विशेष रूप से कमर कस लें। नकदी फसल की सब्जी की यह खेती बहुत लाभकारी  है लेकिन इसमें कीट व्याधियां इतनी अधिक लगतीं हैं कि उनके लिए प्रत्येक पल सतर्क रहना होता है। जरा सी चूक पर फसल के खराब होने में देरी नहीं लगती है। पहाड़ी व मैदानी क्षेत्रों में होने वाली पत्ता गोभी का सबसे बड़ा लाभ यह है कि बाजार में कीमत घटने के समय खेत में रोक भी सकते हैं, महंगी होने पर काट कर बेच भी सकते हैं। पत्ता गोभी का सबसे अधिक उपयोग सब्जी बनाने में होता है। इसके अलावा सलाद, कढ़ी, अचार, स्ट्रीट फूड, पाव भाजी, आदि चाट आइटम बनाने के भी काम में लाया जाता है। पत्ता गोभी में 1.8 प्रतिशत प्रोटीन,0.1 प्रतिशत वसा, 4.6 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन के साथ बिटामिन ए व विटामिन बी-1, विटामिन बी-2 तथा विटामिन सी पाया जाता है। पत्ता गोभी पेट के रोगों के साथ शुगर डाइबिटीज में लाभदायक होता है। आइए जानते हैं इसकी खेती के बारे में।

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मिट्टी व जलवायु

पत्ता गोभी की खेती वैसे तो सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन जल निकास वाली दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। पत्ता गोभी की खेती के लिये सामान्य जलवायु की जरूरत होती है। अधिक सर्दी और पाले से पत्तागोभी को नुकसान हो सकता है। गांठों के विकास के समय 20 डिग्री के आसपास तापमान होना चाहिये। वर्षा के समय तापमान घटने से पत्ता गोभी की गांठ अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाती है और स्वाद भी खराब हो जाता है।

खेत की तैयारी कैसे करें

किसान भाइयों को चाहिये कि जलनिकासी वाले खेत में सबसे पहले हैरों आदि से खेत की मिट्टी को पलटवा दें जिससे पूर्व की फसल के अवशेष और खरपतवार उसमें दब जायें और खेत को एक सप्ताह के लिए खुला छोड़ दें। इस बीच सिंचाई कर दें। जब दुबारा खरपतवार उगती दिखाई दे तो उसकी दो तीन बार गहरी जुताई कर देनी चाहिये तथा पाटा चला दें। इससे खेत की मिट्टी भुरभुरी हो जाती है। ये भी पढ़े: सीजनल सब्जियों के उत्पादन से करें कमाई

खाद एवं उर्वरक का प्रबंधन

आखिरी जुताई के पहले खेत में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 20 से 25 टन गोबर की खाद या वर्मी कम्पोस्ट खाद डालनी चाहिये। इसके बाद जब बुवाई होनी हो उससे पहले खेत में 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस, 60 किलो पोटाश लाकर रख लें। बुवाई से पहले आखिरी जुताई के समय फास्फोरस और पोटाश तो पूरी मात्रा डाल दें और नाइट्रोजन की केवल एक तिहाई मात्रा ही डालें।  बची हुई नाइट्रोजन को आधा-आधा बांट लें। उसमें से एक हिस्सा 30 दिन के बाद और दूसरा हिस्सा 50 दिन के बाद खेत में खड़ी फसल पर छिड़क दें।

लाभकारी अच्छी किस्में

पत्ता गोभी के रंग, रूप आकार व पैदावार के आधार पर इसकी किस्मों को कई भागों में बांटा गया है, जो इस प्रकार हैं:-
  1. अगेती किस्में: अगेती फसल के लिए उपयुक्त किस्में गोल्डन एकर, प्राइड आफ इंडिया, पूसा मुक्ता एवं मित्रा, मीनाक्षी आदि प्रमुख हैं।
  2. मध्यम किस्में: मध्यम समय में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्में अर्ली ड्रमहेड, पूसा मुक्त, आदि प्रमुख हैं।
  3. पछेती किस्में: लेट ड्रम हेड, डेनिस वाल हेड, मुक्ता, पूसा ड्रम हेड, रेड कैबेज, पूसा हिट, टायड, कोपेन हेगन,गणेश गोल, हरी रानी कोल आदि प्रमुख हैं।
  4. इनके अलावा माही क्रांति, गुड्डी वाल 65, इंदु, एसएन 183, बीसी 90 भी प्रमुख किस्में हैं।
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बीज की मात्रा व अन्य जानकारियां

किसान भाइयों अगेती किस्म की फसलों को लेने के लिए प्रति हेक्टेयर 500 ग्राम की बीज की आवश्यकता होती है जबकि पछेती खेती के लिए 400 ग्राम के आसपास ही जरूरत होती है। इसका कारण यह है कि अगेती किस्म की पौध लगाने में मरने वाले पौधों की संख्या अधिक होती है। इसलिये बीज अधिक लगाया जाता है।

कब-कब की जाती है बिजाई

पत्ता गोभी की फसल साल में दो बार की जा सकती है। इसकी फसल बरसात व गर्मी के लिए अलग-अलग समय पर ली जाती है।
  1. गर्मी के लिए पत्ता गोभी की बिजाई नवम्बर, दिसम्बर व जनवरी में की जाती है।
  2. बरसात के समय पत्ता गोभी तैयार करने के लिए बिजाई मई, जून व जुलाई में की जाती है।
  3. अगेती खेती यानी गर्मी की फसल के लिए अगस्त-सितम्बर के मध्य तक नर्सरी में बीज की बुवाई कर देनी चाहिये। पछेती फसल के लिए सितम्बर व अक्टूबर कर देनी चाहिये। इसी तरह बरसात की फसल के लिए अगेती फसल के लिए मार्च अप्रैल में नर्सरी की तैयारी कर लेनी चाहिये और पछेती किस्मों की फसल के लिए मई-जून में नर्सरी तैयार करनी चाहिये।

नर्सरी की तैयारी व पौधारोपण

एक मीटर लम्बी और ढाई मीटर चौड़ी क्यारी बनायें। इसमें गोबर की खाद और वर्मी कम्पोस्ट का इस्तेमाल करते हुए बीज की बुवाई करनी चाहिये। पौधशाला ऊंचाई पर बनानी चाहिये। लगभग एक माह में पौध तैयार हो जाती है। इसके बाद खेत में क्यारी बनाकर  पौधों का रोपण करना चाहिये। रोपते समय पौधों की लाइन की दूरी एक  फुट होनी चाहिये और पौधों से पौधों की दूरी भी एक फुट ही होनी चाहिये। ये भी पढ़े: कैसे डालें धान की नर्सरी

सिंचाई का प्रबंधन किस प्रकार करें

बुवाई के एक सप्ताह बाद पहली सिंचाई करनी चाहिये। पत्ता गोभी की अच्छी पैदावार के लिए खेत में नमी हमेशा रहनी चाहिये। बरसात के समय किसान भाई आप खेत की स्थिति के अनुसार सिंचाई करें। सीजन में वर्षा समय पर न होने पर प्रत्येक पखवाड़े में एक बार सिंचाई अवश्य करायें। गर्मी के मौसम मे प्रत्येक सप्ताह में खेतों की सिंचाई करायें।

खरपतवार का नियंत्रण कैसे करें

खरपतवार को नियंत्रण करने के लिए किसान भाइयों को खेत की कम से कम चार बार निराई गुड़ाई करनी चाहिये। निराई गुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि खरपतवार निकालने जो मिट्टी जड़ों से हट जाती है उसे फिर से चढ़ा देना  चाहिये। इसके अलावा खरपतवार नियंत्रण के लिए पेंडीमेथालिन की 3 लीटर मात्रा को  एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

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कीट एवं व्याधियों की रोकथाम

किसान भाइयो पत्ता गोभी की खेती में कीट एवं इल्लियों  की रोकथाम सबसे जरूरी है। पत्ता गोभी में शुरू से ही कीटों का लगना शुरू हो जाता है। यदि समय पर इनका नियंत्रण न किया जा सकता तो फसल पूरी तरह से चौपट हो सकती है। फसलों के लिए सबसे हानिकारक इल्लियों, लूपर्स और कीट अनेक प्रकार हैं,इनमें से प्रमुख कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. आरा मक्खी

  2. फली बीटल

  3. पत्ती भक्षक लटें

  4. हीरक तितली

  5. गोभी की तितली

  6. तम्बाकू की इल्ली

उपचार  या रोकथाम: इन सभी इल्लियों व कीटों को नियंत्रण करने के लिए नीम की निबौली का अर्क 4 प्रतिशत या बीटी -1 एक ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिये। जो किसान भाई इन्सेक्टीसाइड से नियंत्रण करना चाहें Ñवो स्पिनोसैड 43 एससी 1 मिलीलीटरप्रति 4 लीटर पानी में या एमामेक्टिन बेंजोएट 5 एससी 1 ग्राम प्रति 2 लीटर पानी में या क्लोरऐन्ट,निलिमोल 18.5 एसासी एक मिली लीटर प्रति 10 लीटर पानी  में या फेनवेलहेट 20 ईसी 1.5 मिलीलीटर प्रति 2 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। पत्ता गोभी के पत्तों को चूस कर पौधे को कमजोर बनाने वाला एक कीट मोयला भी है, जिसकी रोकथाम करने के लिए डाइमेथेएट 30 ईसी 2. 0 मिलीटर प्रति लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिलीलीटर प्रति 3 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। आईगलन रोग: इस रोग को डम्पिंग आफ भी कहते हैं। यह रोग अगेती किस्मों की नर्सरी में लगना शुरू होता है। इससे पौधे मरने लगते हैं। इसकी रोक थाम के लिए थाइम या कैप्टान 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करना चाहिये। रोग के संकेत मिलने पर बोर्डो मिश्रण 2:2:50 या कॉपर आक्सीक्लोराइड को 3 ग्राम प्रतिलीटर पानी में मिलाकर स्पे्र करें। काला सड़न भी बीजों की क्यारी में या नई पौध में लगता है। इससे फूलों व डंठलों में सड़न पैदा होती है। इसकी रोकथाम पत्ता गोभी की बीजों की बुवाई से पहले स्ट्रेओसाक्लिन 250 ग्राम या बाविस्टिन एक ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोल कर 2 घंटे तक भिगोकर रखें। उसे छाया में सुखाने के बाद ही बुआई करें।  बाद में रोग के संकेत मिलने पर इन्हीं दोनों दवाओं का छिड़काव करें।

फसल की कटाई

किसान भाइयों जब फसल तैयार हो जाये तब आपको फसल की कटाई यानी पत्ता गोभी की तुड़ाई बाजार भाव देख कर करें। अधिकांश किस्मों की फसलें 75 से 90 दिनों के भीतर तैयार हो जातीं हैं। जबकि कुछ ऐसी किस्में भी हैं जिनकी फसल 55 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्ता गोभी के पूरा बड़ा होने पर ही उसकी कटाई करनी चाहिये। पत्ता गोभी अच्छी तरह कड़ा होने पर ही काटा जाना चाहिये। किसान भाइयों पत्ता गोभी की कटाई का समय ठंडा मौसम ही सबसे उपयुक्त होता है। इसको कटाई के बाद छाया या नमी वाली जगह में रखना चाहिये। जिससे काफी समय तक ताजा बना रहे। जब पत्ता गोभी कड़ा हो जाये और उसके पत्ते अलग अलग होने लगे तो तुरन्त काट लेना चाहिये। किसान भाइयों पत्ता गोभी की पैदावार प्रति हेक्टेयर कम से कम 50 टन तो होती ही है। अच्छी किस्म और उचित प्रबंधन वाली खेती से पत्ता गोभी को प्रति हेक्टेयर 70 से 80 टन की भी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

किसान भाई महीनों के अनुरूप सब्जी उगाकर तगड़ा मुनाफा कमा सकते हैं ?

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों की 70% फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि व कृषि संबधी कार्यों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई है। हम लोग खेती-किसानी का कार्य हम जितना सहज समझते हैं, वास्तविकता में यह उतना ज्यादा आसान नहीं है। 

दरअसल, खेती में भी कृषकों को जोखिम का सामना करना पड़ सकता है। कृषि क्षेत्र के अंदर सर्वाधिक जोखिम फसल को लेकर है। अगर उचित समय पर फसल की बुवाई कर दी जाए तो पैदावार शानदार हांसिल हो सकती है। 

वहीं अगर समय का प्रतिकूल चुनाव किया गया तो कोई सी भी फसल बोई जाए उत्पादन बहुत कम हांसिल होता है। परिणामस्वरूप, किसानों की आमदनी में भी गिरावट आ जाती है। 

किसानों को प्रत्येक फसल की शानदार उपज प्राप्त हो सके इसके लिए हम आपको बताएंगे कि आप किस महीने में कौन-सी सब्जी की बुवाई करें। जिससे आपको ज्यादा उपज के साथ ही बेहतरीन लाभ हांसिल हो सके। माहवार सब्जी की खेती कृषकों के लिए सदैव लाभ का सौदा रही है। 

किसान भाई जनवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को वर्ष के प्रथम महीने जनवरी में किसान भाईयों को मूली, पालक, बैंगन, चप्पन कद्दू, राजमा और शिमला मिर्च की उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए। 

किसान भाई फरवरी के महीने में इन फसलों को उगाएं

फरवरी के महीने में राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्डी, अरबी, ग्वार बोना ज्यादा लाभदायक होता है। 

किसान भाई मार्च के महीने में इन फसलों को उगाएं

किसान भाइयों को मार्च के महीने में लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिंडी, अरबी, ग्वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया और करेला की खेती करने से लाभ हांसिल हो सकता है। 

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किसान भाई अप्रैल के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अप्रैल के महीने में चौलाई, मूली की बुवाई कर सकते हैं। 

किसान भाई मई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई मई के महीने में मूली, मिर्च, फूलगोभी, बैंगन और प्याज की खेती से शानदार पैदावार अर्जित कर सकते हैं। 

किसान भाई जून के महीने में इन फसलों को उगाएं  

कृषक जून के महीने में किसानों को करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्डी, टमाटर, प्याज, चौलाई, शरीफा, फूलगोभी, खीरा-ककड़ी और लोबिया आदि की बुवाई करनी चाहिए।

किसान भाई जुलाई के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई जुलाई के महीने में खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिंडी, टमाटर, चौलाई, मूली की फसल लगाना ज्यादा मुनाफादायक रहता है।

किसान भाई अगस्त के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई अगस्त के महीने में बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्स स्प्राउट, चौलाई, गाजर, शलगम और फूलगोभी की बुवाई करना अच्छा रहता है।

किसान भाई सितंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं  

किसान भाई सितंबर के महीने में आलू, टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकोली, गाजर, शलगम और फूलगोभी की खेती से शानदार उपज प्राप्त हो सकती है।

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किसान भाई अक्टूबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई अक्टूबर के महीने में काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, सौंफ के बीज, राजमा, मटर, ब्रोकोली, सलाद, बैंगन, हरी प्याज, लहसुन, गाजर, शलगम, फूलगोभी, आलू और टमाटर की खेती करना लाभकारी हो सकता है।

किसान भाई नवंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई नवंबर के महीने में टमाटर, काली सरसों के बीज, मूली, पालक, पत्ता गोभी, शिमला मिर्च, लहसुन, प्याज, मटर, धनिया, चुकंदर, शलगम और फूलगोभी की फसल को उगाकर कृषक बेहतरीन लाभ कमा सकते हैं।

किसान भाई दिसंबर के महीने में इन फसलों को उगाएं 

किसान भाई दिसंबर के महीने में पालक, पत्ता गोभी, सलाद, बैंगन, प्याज, टमाटर, काली सरसों के बीज और मूली की खेती से बेहतरीन मुनाफा अर्जित किया जा सकता है।

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

सितंबर महीने में अपने परती पड़े खेत में करें इन फली या सब्जियों की बुवाई

भारत के खेतों में मानसून की शुरुआत में बोयी गयी
खरीफ की फसलों को अक्टूबर महीने की शुरुआत में काटना शुरू कर दिया जाता है, पर यदि किसी कारणवश आपने खरीफ की फसल की बुवाई नहीं की है और जुलाई या अगस्त महीने के बीत जाने के बाद सितंबर में किसी फसल के उत्पादन के बारे में सोच रहे हैं, तो आप कुछ फसलों का उत्पादन कर सकते है, जिन्हें मुख्यतः सब्जी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

मानसून में बदलाव :

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में भारत के लगभग सभी हिस्सों से मानसून लौटना शुरू हो जाता है और इसके बाद मौसम ज्यादा गर्म भी नहीं रहता और ना ही ज्यादा ठंडा रहता है। इस मौसम में किसी भी सीमित पानी की आवश्यकता वाली फसल की पौध को वृद्धि करने के लिए एक बहुत ही अच्छी जलवायु मिल सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस्तेमाल आने वाली सब्जियों की बुवाई मुख्यतः अगस्त महीने के अंतिम सप्ताह या फिर सितंबर में की जाती है।

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भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल कृषि क्षेत्र से जुड़ी इसी संस्थान की एडवाइजरी के अनुसार, भारत के किसान नीचे बताइए गई किसी भी फली या सब्जियों का उत्पादन कर सितंबर महीने में भी अपने परती पड़े खेत से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
  • मटर की खेती

 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में के साथ 400 मिलीमीटर की बारिश में तैयार होने वाली यह सब्जी दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में उगाई जा सकती है। मानसून के समय अच्छी तरीके से पानी मिली हुई मिट्टी इसके उत्पादन को काफी बढ़ा सकती है।अपने खेत में दो से तीन बार जुताई करने के बाद इसके बीज को जमीन से 2 से 3 सेंटीमीटर के अंदर दबाकर उगाया जा सकता है।
मटर की खेती से संबंधित पूरी जानकारी और बीमारियों से इलाज के लिए यह भी देखें : जानिए मटर की बुआई और देखभाल कैसे करें
  • पालक की खेती

वर्तमान में उत्तरी भारत में पालक के लगभग सभी किसानों के द्वारा हाइब्रिड यानी कि संकर बीज का इस्तेमाल किया जाता है। 40 से 50 दिन में पूरी तरह से तैयार होने वाली यह सब्जी किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाई जा सकती है, हालांकि इसकी पौध लगाने से पहले किसानों को मिट्टी की अम्लता की जांच जरूर कर लेनी चाहिए। 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य बेहतर उत्पादन देने वाली यह सब्जी पतझड़ के मौसम में सर्वाधिक वृद्धि दिखाती है। प्रति हेक्टेयर 20 से 30 किलोग्राम बीज की मात्रा से बुवाई करने के तुरंत बाद खेत की सिंचाई कर देनी चाहिए।
पालक की खेती के दौरान खेत को तैयार करने की विधि और इस फसल में लगने वाले रोगों से निदान के बारे में 
संपूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए, यह भी देखें : पालक की खेती की सम्पूर्ण जानकारी
  • पत्ता गोभी की खेती

सितंबर महीने के पहले या दूसरे सप्ताह में शुरुआत में नर्सरी में पौध उगाकर 20 से 40 दिन में खेत में पौध को स्थानांतरित कर उगायी जा सकने वाली यह सब्जी भारत में लगभग पूरे वर्ष भर इस्तेमाल की जाती है। 70 से 80 दिनों के अंतर्गत पूरी तरह तैयार होने वाली यह फसल पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी सिंचाई वाली मिट्टी में आसानी से बेहतरीन उत्पादकता प्रदान कर सकती है। ड्रिप सिंचाई विधि तथा उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से इस फसल की पत्तियों की ग्रोथ काफी तेजी से बढ़ती है। 15 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में तैयार होने वाली यह सब्जी की फसल जब तक कुछ पत्तियां नहीं निकालती है, अच्छी मात्रा में पानी की मांग करती है। इस फसल की खास बात यह है कि इससे बहुत ही कम जगह में अधिक पैदावार की जा सकती है, क्योंकि इसके दो पौध के मध्य की दूरी 30 सेंटीमीटर तक रखनी होती है, इस वजह से एक हेक्टेयर में लगभग 20 हज़ार से 40 हज़ार छोटी पौध लगायी जा सकती है।
पत्ता गोभी फसल तैयार करने की संपूर्ण जानकारी और इसकी वृद्धि के दौरान होने वाले रोगों के निदान के लिए,
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  • बैंगन की खेती

भारत में अलग-अलग नामों से उगाई जाने वाली यह सब्जी 15 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान के मध्य अच्छी उत्पादकता प्रदान करती है। हालांकि, इस सब्जी की खेती खरीफ और रबी की फसल के अलावा पतझड़ के समय भी की जाती है। अलग-अलग प्रकार की मिट्टी में उगने वाली यह फसल अम्लीय मिट्टी में सर्वाधिक प्रभावी साबित होती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार एक हेक्टेयर क्षेत्र में बैंगन उत्पादित करने के लिए लगभग 400 से 500 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इन बीजों को पहले नर्सरी में तैयार किया जाता है और उसके बाद खेत को अच्छी तरीके से तैयार कर 50 सेंटीमीटर की दूरी रखते हुए बुवाई जाती है। ऑर्गेनिक खाद और रासायनिक उर्वरकों के सीमित इस्तेमाल से 8 से 10 दिन के अंतराल पर बेहतरीन सिंचाई की मदद से भारत के किसान काफी मुनाफा कमा रहे है।
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  • मूली की खेती

सितंबर से लेकर अक्टूबर के महीनों में उगाई जाने वाली यह सब्जी बहुत ही जल्दी तैयार हो सकती है। पिछले कुछ समय में बाजार में बढ़ती मांग की वजह से इस फसल का उत्पादन करने वाले किसान काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। 15 से 20 सेंटीग्रेड के तापमान में अच्छी उत्पादकता देने वाली यह फसल उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में अपनी अलग-अलग किस्मों के अनुसार प्रभावी साबित होती है। किसान भाई कृषि विज्ञान केंद्र से अपनी खेत की मिट्टी की अम्लीयत या क्षारीयता की जांच अवश्य कराएं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन के लिए खेत की पीएच लगभग 6.5 से 7.5 के मध्य होनी चाहिए। सितंबर के महीने में अच्छी तरीके से खेत को तैयार करने के बाद गोबर की खाद का इस्तेमाल कर, 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बीज की बुवाई करते हुए उचित सिंचाई प्रबंधन के साथ अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
मूली की फसल में लगने वाले कई प्रकार के रोग और इसकी अलग-अलग किस्मों की जलवायु के साथ उत्पादकता का पता लगाने के लिए, 
यह भी देखें : मूली की खेती (Radish cultivation in hindi)
  • लहसुन की खेती

ऊटी 1 और सिंगापुर रेड तथा मद्रासी नाम की अलग-अलग किस्म के साथ उगाई जाने वाली लहसुन की फसल लगभग 12 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में बोयी जाती है। पोषक तत्वों से भरपूर और अच्छी तरह से सिंचाई की हुई मिट्टी इस फसल की उत्पादकता के लिए सर्वश्रेष्ठ साबित होती है। प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 किलोग्राम बीज के साथ उगाई जाने वाली यह खेती कई प्रकार के रोगों के खिलाफ स्वतः ही कीटाणुनाशक की तरह बर्ताव कर सकती है। बलुई और दोमट मिट्टी में प्रभावी साबित होने वाली यह फसल भारत में आंध्र प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के अलावा गुजरात राज्य में उगाई जाती है। वर्तमान में भारतीय किसानों के द्वारा लहसुन की गोदावरी और श्वेता किस्मों को काफी पसंद किया जा रहा है। इस फसल का उत्पादन जुताई और बिना जुताई वाले खेतों में किया जा सकता है। पहाड़ी क्षेत्र वाले इलाकों में सितंबर के महीने को लहसुन की बुवाई के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, जबकि समतल मैदानों में इसकी बुवाई अक्टूबर और नवंबर महीने में की जाती है।
लहसुन की फसल से जुड़ी हुई अलग-अलग किस्म और जलवायु के साथ उनकी प्रभावी उत्पादकता को जानने के अलावा,
इस फसल में लगने वाले रोगों के निदान के लिए यह भी देखें : लहसुन को कीट रोगों से बचाएं
भारत के किसान भाई इस फसल के बारे में कम ही जानकारी रखते है, परंतु अरुगुला (Arugula) सब्जी से होने वाली उत्पादकता से कम समय में काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसे भारत में गारगीर (Gargeer) के नाम से जाना जाता है।यह एक तरीके से पालक के जैसे ही दिखने वाली सब्जी की फसल होती है जो कि कई प्रकार के विटामिन की कमी को दूर कर सकती है। पिछले कुछ समय से उत्तरी भारत के कुछ राज्यों में इस सब्जी की डिमांड बढ़ने की वजह से कई युवा किसान इसका उत्पादन कर रहे है। सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बोई जाने वाली यह सब्जी वैसे तो किसी भी प्रकार की मिट्टी में अच्छा उत्पादन दे सकती है, परंतु यदि मिट्टी की ph 7 से अधिक हो तो यह अधिक प्रभावी साबित होती है। पानी के सीमित इस्तेमाल और जैविक खाद की मदद से इस फसल की वृद्धि दर को काफी तेजी से बढ़ाया जा सकता है। इस सब्जी की फसल की छोटी पौध 7 से 10 दिन में अंकुरित होना शुरू हो जाती है। बहुत ही कम खर्चे पर तैयार होने वाली यह फसल 30 दिन में पूरी तरीके से तैयार हो सकती है। दक्षिण भारत के राज्यों में इसकी बुवाई सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में शुरू हो जाती है, जबकि उत्तरी भारत में यह अक्टूबर महीने के पहले सप्ताह में बोयी जाती है। इस फसल के उत्पादन में बहुत ही कम सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है परंतु फिर भी नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के सीमित इस्तेमाल से उत्पादकता को 50% तक बढ़ाया जा सकता है।


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आशा करते हैं कि Merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को सितंबर महीने में बुवाई कर उत्पादित की जा सकने वाली फसलों के बारे में दी गई यह जानकारी पसंद आई होगी और यदि आप भी किसी कारणवश खरीफ की फसल का उत्पादन नहीं कर पाए है तो खाली पड़ी हुई जमीन में इन सब्जी की फसलों का उत्पादन कर कम समय में अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
पर्वतीय क्षेत्रों पर रहने वाले किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाई विदेशी सब्जी उत्पादन की नई तकनीक, बेहतर मुनाफा कमाने के लिए जरूर जानें

पर्वतीय क्षेत्रों पर रहने वाले किसानों के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सुझाई विदेशी सब्जी उत्पादन की नई तकनीक, बेहतर मुनाफा कमाने के लिए जरूर जानें

मशीनीकरण के बढ़ते प्रभाव और इंटरनेट के सहयोग से वैश्विक खेती के बारे में मिलने वाली जानकारी की मदद से अब भारत के ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले किसान भी कई प्रकार की दुर्लभ सब्जियों का उत्पादन कर रहे हैं। अब भारतीय ग्रामीण किसान भी कुछ ऐसी सब्जियां उगा रहे हैं जिन की शुरुआत भारत में ना होकर विदेश में हुई थी, इन सब्जियों को विदेशी सब्जियां भी कहा जाता है। बेहतर स्वाद और सरलता से पकने के लिए मशहूर विदेशी सब्जियां की मांग धीरे-धीरे बाजारों में भी बढ़ रही है। पिछले कुछ समय से शहरी क्षेत्रों में सुपर मार्केट चैन की वजह से अब विदेशी सब्जियां जैसे लाल पत्ता गोभी, चाइनीस पत्ता गोभी, सेलेरी, ब्रोकली और जुकीनी तथा बेबी कॉर्न एवं बेबी गाजर की बिक्री में बढ़ोतरी हुई है। कम कैलोरी क्षमता वाली विदेशी सब्जियां कई प्रकार के पोषक तत्वों से परिपूर्ण होती है साथ ही इनके निरन्तर सेवन से बेहतर एंटीऑक्सीडेंट और विटामिन की पूर्ति की जा सकती है।


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विदेशी सब्जियों के उत्पादन के लिए आवश्यक जलवायु :-

ऊपर बताई गई लगभग सभी विदेशी सब्जियों के लिए ठंडा और नमी वाला मौसम सर्वोत्तम होता है। 15 से 22 डिग्री सेल्सियस के मध्य तापमान इन सब्जियों की बेहतर वृद्धि के लिए लाभदायक होता है। अधिक सर्दी और पाले को सहन करने की क्षमता रखने वाली विदेशी सब्जियां दोमट मृदा में बेहतर उत्पादन देती है।

विदेशी सब्जियों को उगाने के लिए कैसे करें खेत की तैयारी :-

शुरुआत में खेत को समतल बनाने के लिए दो से तीन बार जुताई करके छोटे-छोटे आकार की क्यारियों में बांट लेना चाहिए। फसल को कई प्रकार के मृदा जनित रोग जैसे कि आर्द्रगलन और कीटों से होने वाले रोग से बचाने के लिए सौर तापीकरण विधि का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अलावा कुछ रासायनिक उर्वरक जैसे केप्टोन और फॉर्मेलिन का प्रयोग कर भी बीज को उपचारित किया जा सकता है। वर्मी कंपोस्ट और जैविक खाद का इस्तेमाल फसल की बेहतर वृद्धि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। जैविक खाद का इस्तेमाल बुवाई से पहले ही खेत में बिखराव करके करना चाहिए। यदि अधिक ढलाई वाली जमीन के साथ ही किसी स्थान की मृदा ठोस हो तो ऊपर की सतह पर बालू मिट्टी का छिड़काव कर भी क्यारियां बनाई जा सकती है। एक बार फसल की बुवाई करने के बाद क्यारियों को पारदर्शी पॉलिथीन से ढक देना चाहिए।


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किसान भाइयों को बेहतर पौधशाला के निर्माण के दौरान कुछ बातें ध्यान रखनी चाहिए जैसे की विदेशी सब्जियों के बीज आकार में बहुत ही छोटे होते हैं और इन्हें उगाने के लिए एकदम सटीक जलवायुवीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, तापमान में थोड़ा भी बदलाव होने पर इनसे उगने वाले पौधे की गुणवत्ता पूरी तरीके से खराब हो सकती है। प्रो-ट्रे (Pro-Tray) पौधशाला विधि की मदद से मृदा रहित नर्सरी भी तैयार की जा सकती है, इस विधि में अनुपजाऊ मृदा के स्थान पर नारियल के बुरादे का इस्तेमाल किया जा सकता है, इसके अलावा वरमीक्यूलाइट तथा परलाइट का मिश्रण बनाकर बेहतर पोषक तत्वों वाला एक गाढ़ा घोल तैयार किया जा सकता है। प्रो-ट्रे विधि से तैयार नर्सरी की छोटी पौध में मृदा जनित कीटों और कई प्रकार के बैक्टीरिया के द्वारा पहुंचाए जाने वाले नुकसान की कम संभावना होती है, इसलिए अधिक उपज प्राप्त होना अनुमानित होता है।

पहाड़ी क्षेत्रों पर रहने वाले किसान भाई कैसे करें उत्पादन के लिए विदेशी सब्जियों का चयन :-

वर्तमान में चल रही बाजार मांग और बेहतर उत्पादन देने वाली सब्जियों का चयन करना किसानों के लिए मुनाफा दायक हो सकता है। वर्तमान में भारतीय बाजार में लोकप्रिय और अक्टूबर महीने के शुरुआती दिनों में उगाई जा सकने वाली सब्जियां जैसे कि सेलेरी, स्विस चार्ड तथा लाल पत्ता गोभी और चाइनीस पत्ता गोभी के अलावा ब्रोकली जैसी सब्जियां प्रमुख है। यदि कोई किसान भाई गर्मियों के समय में पत्तेदार सब्जियां जैसे कि चेरी टमाटर, बेबीकॉर्न और शिमला मिर्च उगाना चाहता है तो इन की बुवाई अप्रैल महीने की शुरुआत में की जा सकती है।


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विदेशी सब्जियों में कैसे करें कीट एवं रोग का बेहतर प्रबंधन :-

वर्तमान में सुझाई गई वैज्ञानिक तकनीकों के तहत ग्रीन हाउस तकनीक का इस्तेमाल कर कीट और रोगों से बचा जा सकता है। ग्रीन हाउस विधि से मृदा और बीजजनित रोग जैसे किडंपिंग ऑफ तथा ब्लैक रोट आदि से बचा जा सकता है। इन रोगों की रोकथाम के लिए डाईथेन- एम नामक रसायन का इस्तेमाल 2 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर किया जा सकता है।

विदेशी सब्जियों की कटाई के दौरान बरती जाने वाली सावधानियां :-

कुछ पत्तेदार विदेशी सब्जियां की कटाई की शुरुआत पौधरोपण के 50 दिनों के अंतर्गत कर लेनी चाहिए। इससे अधिक समय होने पर पत्तियों की गुणवत्ता में गिरावट आती है और सब्जी का स्वाद भी धीरे-धीरे खत्म होता जाता है। सुबह के समय सब्जी के पत्तियों की तुड़ाई करना सर्वोत्तम माना जाता है, क्योंकि इस समय पत्तियों के पर्ण में पानी की मात्रा सर्वाधिक होती है और उन्हें तोड़ने के बाद लंबे समय तक स्टोर किया जा सकता है। एक बार पत्तियों की तुड़ाई करने के बाद पौधे की पुनः वृद्धि के लिए बेहतर जैविक खाद का प्रयोग कर मृदा में मिला देना चाहिए। चेरी टमाटर और शिमला मिर्च जैसी विदेशी सब्जियों के उत्पादन के दौरान परिवहन के समय को कम रखना चाहिए, क्योंकि परिवहन में लगने वाले समय के दौरान इनका रंग हरे से लाल हो जाता है, इसलिए इनकी तुड़ाई उसी समय करनी चाहिए जब फल परिपक्व होने शुरू हो जाए, नहीं तो सब्जी की बिक्री में गिरावट हो सकती है। आशा करते हैं पर्वतीय क्षेत्रों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तरी पूर्वी भारतीय राज्य में रहने वाले किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा उपलब्ध करवाई गई 'वैज्ञानिक विधि से विदेशी सब्जी उत्पादन' की यह जानकारी पसंद आई होगी और आप भी भविष्य में बेहतर पौधशाला निर्माण और उर्वरकों के सही प्रबंधन की मदद से अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।